पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ...
सभी को सादर जय जिनेंद्र
माँ श्री जी ने आज के उद्योधन में सुखी जीवन जीने के दो तरीके बताएं | पहला, हमारे पास जो कुछ भी है, उसमें हमे संतुष्ट रहना चाहिए और उसकी खुशी मनानी चाहिए, ना कि जो हम पर नहीं है उसको सोचकर दुखी होना चाहिए| इसको समझाते हुए माँ श्री जी ने एक उदाहरण दिया- एक दिन राजा ने राज्य भ्रमण के दौरान एक भिखारी को देखा और उसके पास रथ रुकवा लिया और उससे कहता है कि आज तुम मुझे भीक्षा दो| भिखारी अचंभित रह जाता है और उसके प्राण सूख जाते हैं, उसने तो हमेशा मांगा ही है, देने की तो उसको आदत ही नहीं थी| राजा को तो मना भी नहीं कर सकता था, तब उसने अपने झोले में हाथ डाल कर जैसे तैसे पांच वस्तुएं निकाली और उनको अच्छे से साफ करके राजा को दी| उस दिन शाम तक भिखारी को तीन झोले भर के भिक्षा मिली, लेकिन तब भी वह खुश नहीं था | घर पहुंच कर उसकी घरवाली ने उससे पूछा कि आज क्या लाए हो तो कहने लगा की लाया क्याआज तो देना पड़ गया राजा को, लेकिन उसकी बीवी तो खुश थी कि आज तो तीन झोले भर के भिक्षा मिली है| भिखारी को तो देने का दुख था, जब उसकी बीवी ने सारा सामान निकाल कर मिलाना शुरू किया तो देखा कि उसमें तो पांच कीमती सच्चे मोती थे, वो तो खुशी के मारे पागल हो गई लेकिन भिखारी यह देख और भी दुखी हो गया और माथा पीटने लगा कि मैंने केवल पांच ही वस्तुएं क्यों दी राजा को, अगर मैं ज्यादा देता तो मुझे भी ज्यादा मोती मिलते| भिखारी को अब भी पांच मोती मिलने की खुशी नहीं बल्कि और ज्यादा न मिलने का दुख था, इसका तात्पर्य ये हुआ के आप हमेशा ज्यादा की अपेक्षा करते रहे तो कभी खुश नहीं रह पाएंगे, बल्कि हमारे पास जो भी है उसकी खुशी मनानी चाहिए| दूसरा उपाय बताते हुए माँ श्री जी ने समझाया की, इस संसार में कोई भी वस्तु सदैव के लिए नहीं है, हमें यह सोचकर दुखी नहीं होना चाहिए कि, पहले ऐसा होता था, पहले वैसा होता था, अब ऐसा नहीं होता है, पहले सब लोग परिवार में मिलकर रहते थे, आज के जीवन में परिवार में मिलकर नहीं रहते हैं, पहले के लोग बहुत शक्तिशाली होते थे, लोगों के पास शक्ति थी, लेकिन मशीने नहीं थी, आज के लोगों के पास शक्ति नहीं तो मशीने है| एक उदाहरण देते हुए बताया कि, एक परिवार में बेटा अपने पिता के साथ खाना खाया करता था, एक दिन बेटे ने अपने पिता से कहा कि पिताजी मैं अब बड़ा हो गया हूं, मैं आपके साथ खाना नहीं खाया करूंगा,अब मैं अलग ही खाऊंगा| तब पिता ने जवाब दिया कि अगर तू बड़ा हो गया है तो अब से तू नहीं मैं तेरे साथ खाना खाया करूंगा, पहले मैं बड़ा था तो तू मेरे साथ खाता था अब तू बड़ा हो गया है तो मैं तेरे साथ खाना खा लिया करूंगा| फर्क सिर्फ सोच का है| पहले बेटा अपने पिता का हाथ पकड़ कर चलता था और बुढ़ापे में पिता बेटे का हाथ पकड़ कर चलता है | इसी तरह जीवन निरंतर बदलता रहता है | 'परिवर्तन ही जीवन का नियम है' अंत में विराम देते हुए कहा की धर्म हमें केवल पुण्य कर्म नहीं अपितु सुखी जीवन जीने की राह भी दिखता है|
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