Maa Shri Kaushal ji Udhyodhan

पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ... 

सभी को सादर जय जिनेंद्र

ऋषभांचल युवा संगम की मासिक अभिषेक बैठक आज पूज्या मां श्री कौशल जी के पावन सानिध्य एवं आशीर्वाद में सानंद संपन्न हुई । बारिश एवं ठंड के बावजूद काफी सदस्य समय से ऋषभांचल में उपस्थित हुए । अभिषेक के पश्चात पूज्या मां श्री कौशल जी ने हमारी क्लास को आगे बढ़ाते हुए श्रावक के गुणो के बारे में बताते हुए बताया । 
अहिंसा परमो धर्म बोलते हैं और किसी को परमो धर्म क्यों नहीं कहा गया आचोर्य को क्यों नहीं है सत्य परमोधर्म क्यों नहीं है यह कोई और परमो धर्म क्यों नहीं कहा गया। I इस संदर्भ में मां श्री ने एक संदर्भ बताते हुए बताया की सोनीपत में एक बड़े ज्योतिषाचार्य प्रवचन सुनने आते थे । उन्होंने बताया की " आपको सुनने से पहले में सत्य की उपासना करना था , कोई मुझसे मिलने आता था तो और पूछता था कि मैं अंदर आ जाऊं कि मैं अंदर आ जाऊं तो मैं साफ मना कर देता था नहीं अभी नहीं अभी व्यस्त हूं कोई काला होता था तो उसे मुंह पर ही बोलते थे, तुम बहुत काले हो जिसके साथ जो बात होती थी वह सत्य है उसे मुंह पर बोल देता था। लेकिन ऐसा करते हुए मैंने यह कभी जाना ही नहीं इस सब से सब मुझसे अत्यंत नाराज हो जाते थे और मेरे व्यवहार से उन्हें बहुत पीड़ा पहुंचती थी ।जब से मैंने आपको सुनना शुरू किया तब मैं समझा कि दूसरे का हित का बोलना सत्य है , और वह सत्य जो दूसरों को पीड़ा पहुंचाए वह सत्य से भी ज्यादा बड़ा असत्य है। किसकी जान ले ले किसीको पीड़ा पहुंचाए वह हिंसा हैं और वह सत्य , सत्य ना होकर  असत्य हैं । इसलिए अहिंसा सबसे मुख्य हैं । सबकी प्राणों की रक्षा करना अहिंसा हैं और उसमें भी सबसे पहले मुख्यतः अपने प्राणों की रक्षा करना अतिप्रमुख हैं । क्योंकि जब हम किसी और  की हिंसा करते हैं तो पहले अपनी खुद की हिंसा होती हैं , किसी की हिंसा करने केलिए पहले हम प्लानिंग करते हैं सोचते हैं फिर हिंसा करते हैं तो इस पूरी प्लानिंग में बार बार अपनी हिंसा पहले हुई । इसलिए पहले अपने प्राणों की रक्षा करना जरूरी ।प्राण 10 होते हैं  पांच इंद्रिय , तीन बल ( मन , वचन , काय) आयु व श्वासोच्छ्वास। यह 10प्राण हैं जिनकी हमें रक्षा करनी हैं , मां श्री ने इसी कड़ी में बताया कि आजकल एक 11वां प्राण भी है और वह है धन इसलिए हमें उसकी भी रक्षा करनी चाहिए। इसी घड़ी में आगे चलते हुए मां श्री ने  बताया कि लोभ पाप का बाप कहलाता है, क्या हैं लोभ , लोभ हैं जरूरत से ज्यादा की आकांक्षा करना, जरूरत से ज्यादा संचय करना,  जरूरत से ज्यादा की कामना होना। लोग की पूर्ति के लिए हम क्या करते हैं लोग की पूर्ति के लिए हम करते हैं - माया -मायाचारी, तो लोभ से आया मायाचारी , और जब हम मायाचारी में सफल हो जाते हैं तो फिर हमें आता है मान घमंड , मायाचारी में सफल न हो तो आता है क्रोध। तो क्रोध से बचाना है तो मान ना करो । और मान का क्षय करना है तो मायाचारी मत करो,  और मायाचारी को समाप्त करना है तो लोभ मत करो । इन विकारों को हम कैसे समाप्त कर सकते हैं हम कैसे इनसे निकल सकते हैं, तो इसके लिए हमें णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए,नमोकार मंत्र का जाप करके हम  इन से निजात पा सकते हैं कम से कम नौ बार नामोकार  मंत्र पढ़ना चाहिए। एक संदर्भ बताते हुए मां श्री ने बताया की एक सेठ एक बड़े आचार्य के पास गए और उनसे अपने लोभ की पूर्ति के लिए मंत्र मांगा। तो आचार्य ने उन्हें णमोकार मंत्र का जाप करने के लिए बोल दिया और सेठ को समझाया कि इसका सच्चे मन से निरंतर आप जाप करो तो देव प्रकट हो जाएगा। और फिर आप देव से अपनी वांछित इच्छा पूरी करवा लेना। सेठ बड़ी तलीनता से मंत्र का जाप करने लगा ।उसने सवा लाख मंत्र का जाप किया ,एक बार किया, दो बार किया पूरे 30 बार किया ।लेकिन देव प्रकट नहीं हुआ ।लेकिन इतनी बार जाप करते हुए उसके लोभ का ही क्षय हो गया । और उसने कहा कि मैं किस आडंबर में पड़ा हुआ हूं किस लालच में पड़ा हुआ हूं ।अब मैं इस लोभ को छोड़कर दीक्षा को ही धारण करूंगा और वह लोभ छोड़कर दीक्षा को धारण कर फिर जाप करने लगे और अब देव प्रकट हो गया ।जब देव प्रकट हो गया तब उसने उनसे उनकी इच्छा पूछी तब सेठ ने कहा मेरी कोई इच्छा शेष नहीं रह गई है ।अब मुझे आपसे कुछ भी आकांक्षा नहीं है इसमें देव ने कहा नहीं आप जो चाहे वह मुझसे मांग सकते हैं तो सेठ ने कहा मुझे कुछ नहीं चाहिए लेकिन बस इतना बता दीजिए कि मैं इतनी बार 30 बार सवा लाख मंत्रों का जाप किया लेकिन आप प्रकट नहीं हुए और अब आप प्रकट हो गए जब मेरी इच्छा ही समाप्त हो गई हैतो। देव ने कहा आपके इतने कर्म उदय में थे आप जितनी बार अपने सवा लाख मंत्रों का जाप किया वह कर्म आपके खत्म होते गए अब आपके सब कर्म जब खत्म हो गए तब मैं प्रकट हो गय तो सेठ को समझ में आया की इतने कर्म थे  और उन्होंने 30 बार सवा लाख मंत्रों की जाप करके उन कर्मों का क्षय कर  दिया। इसलिए कई बार हमें लगता है कि हम इतने मंत्रों का जाप कर रहे हैं, लेकिन कुछ हो नहीं रहा। तब हमें समझना चाहिए कि हमारे पुराने कर्म कट रहे हैं और हमें निरंतर यह जाप करते रहना चाहिए।चार कषाय (क्रोध मान माया लोभ) तीन  मन वचन काय , कृत (करना) कारित (करना) अनुबोद्ना ( देखकर भावना भाना) , समरंभ ,समारंभ, आरंभ । यह मिलकर १०८ होंजाते हैं । इस संबंधित पाप के क्षय के लिए हम जाप माला के १०८ मंत्र पढ़ते हैं ।

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