पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ...
सभी को सादर जय जिनेंद्र
आज की युवा संगम की बैठक में परम पूज्य मां श्री कौशल जी उद्बोधन में पूर्व विषय*सम्यक दर्शन* के बारे में और विस्तार से समझा। मां श्री ने बताया कि दुनिया में सब किसी ना किसी रूप में भगवान को मानते हैं। सभी धर्मों में कहते हैं कि तुम भगवान के भक्त, नबी, पुत्र आदि हो सकते हो परन्तु केवल जैन धर्म में ही कहा है कि तुम भी भगवान हो सकते हो। हमें स्वाधीन होने के लिए पूजा करनी चाहिए। मां श्री जी ने बताया कि ये जो बाद की पूजाएं लिखी गई है वह एक दृष्टि से गलत है उनमें मांगना लिखा है भगवान यह दे दो भगवान वह दे दो जो भगवान ने स्वयं छोड़ दिया वह कैसे देंगे। हमारे में तो यह कहा है कि तुम भी भगवान हो सब भगवान है अंतर सिर्फ इतना है हम में रोग हैं वे रोग रहित हैं। अन्तर यहीं ऊपरी जान वे विराग यहां राग वितानमां श्री जी ने कहा कि जैसे रास्ते पर एक फकीर बैठा है उसको कहा जाए कि तू भी प्रधानमंत्री बन सकता है तो वह बहुत खुश हो जाएगा उसी तरह हमारे यहां कहा कि तुम भी भगवान बन सकते हो सब भगवान बन सकते हैं। इसके आगे मां श्री जी ने कहा कि भगवान बन ही नहीं सकता तू भी भगवान है। क्योंकि भगवान ना हो तो बन नहीं सकता जैसे पीतल को कितना भी रगड़ो वह सोना नहीं बन सकता इसी तरह भगवान है तभी बना जा सकता है। तुम में भी भगवता छिपी हुई है।बस हम यह जान नहीं पाते कि हम भी भगवान हैं। हमारी शक्तियां छिपी हुई है हम उन्हें पहचान नहीं पाते जिस प्रकार ज्ञानी ये मानते हैं कि एक बीज में वृक्ष है और अज्ञानी नहीं मानता। इसी प्रसंग में मां श्री ने एकलव्य का उदाहरण दिया कि उनमें विद्या छुपी हुई थी और वह उसे सीखने गुरु द्रोणाचार्य के पास गए उन्होंने मना किया तो उनकी मूर्ति बनाकर सीखने लगे विद्या तो उनके अंदर ही थी, परंतु क्योंकि गुरु को सिद्ध है इसलिए उन्हें देखकर उन्होंने भी अपनी विद्या प्रगट की। मूर्ति से विद्या प्रगट नहीं हुई मूर्ति ने नहीं सिखाया पर व्यवहार में यह चलन है की अहंकार छोड़ने से शक्ति प्रकट होती है।आगे मां श्री जी ने बताया कि हम सुख चाहते हैं धन मकान सभी चीजें हम सिर्फ सुख के लिए चाहते हैं। मां श्री जी ने सुख के 3 विशेषण बताएं पहला स्थाई हो दूसरा पूर्ण हो और तीसरा स्वाधीन हो हमें किसी के अधीन नहीं होना। दुख दूसरी जगह से आता है दूसरी चीजों से आता है लेकिन सुख कहीं से आता नहीं है वह अपने भीतर ही है जिस प्रकार मिश्री में मिठास उसकी स्वतः ही है। एक फकीर के पास एक छोटा सा पत्थर था किसी ने उसे बताया कि वह बहुत कीमती है उसने उसे एक डिबिया में संभाल कर रख लिया एक दिन उसे एक जौहरी मिला उसने देखा कि यह बहुत कीमती पत्थर है उसने पूछा कैसे कीमती है पत्थर तो पत्थर ही है लेकिन सबके कहने से मैंने इसको छुपा कर रखा है तब जौहरी ने उस पत्थर को एक छोटे से लोहे के टुकड़े से रगड़ कर दिखाया तो वे टुकड़ा सोने का हो गया था फकीर ने पूछा कि मैंने इतने दिन से लोहे की डिब्बी में रखा हुआ है यह तो सोने की नहीं बनी तो जौहरी ने बताया कि तुमने पत्थर और लोहे के बीच कपड़ा लगा रखा है ऐसे ही हमारे और हमारे संपदा के बीच अहंकार है, मम कार है इसलिए हम सोना होते हुए भी सोना नहीं है। सम्यक दर्शन में सबसे पहली चीज जीव का श्रद्धान है। देव शास्त्र गुरु का श्रद्धान। देव वह जैसा होना चाहते हैं।जो तुम होना चाहते हो उसको पहचानो और जो नहीं होना चाहते उसको मैं मत मानो। जो मैं हूं उसको मैं जानो जो पर है उसको पर जानो। दूध को दूध और पानी को पानी जानो।परम पूज्य मां श्री जी ने सभी को बहुत आशीर्वाद दिया 🙌🙌
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