Maa Shri Kaushal ji Udhyodhan

पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ... 

सभी को सादर जय जिनेंद्र

आज की मीटिंग में मां श्री जी ने बताया कि पूरे विश्व में मनुष्य योनि ही सबसे विकसित योनि है| हमारे शरीर में अमूल्य शक्तियां हैं जो सूर्य से भी ज्यादा ऊर्जा पैदा कर सकती हैं, जैसे कि सबसे बुद्धिमान व्यक्ति भी केवल अपने मस्तिष्क का 10% ही उपयोग करता है| हमारे शरीर में 64 यंत्र होते हैं जिसमें से पहला नाभि मैं होता है जो शक्ति का केंद्र है, दूसरा हृदय है जो भावों का केंद्र है, और तीसरा माथे के मध्य में है जो की ज्ञान का केंद्र है| हम इन यंत्रों को खोलना भूल गए हैं, इनके दरवाजे बाहर की तरफ खुले हैं जबकि हमें उनहे अंदर की तरफ खोलने का प्रयास करना चाहिए| यह यंत्र अनंत शक्तियों से भरपूर है उसका अनुमान हम इसी से लगा सकते हैं जैसे भाव कभी समाप्त नहीं होते और सब के प्रति अलग-अलग भाव पैदा होते रहते हैं| उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि एक बार रुबीना नाम की लड़की कुरान पढ़ रही थी और पढ़ते-पढ़ते उसने एक वाक्य को काट दिया जब मौलाना जी ने यह देखा तो वह कहने लगे कि क्या तुम कुरान से भी ऊपर हो गई हो इसमें गलत ही क्या लिखा है की 'बुरे के साथ भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए' तो उस पर रुबीना कहने लगी कि बुरा और अच्छा तो हमारे भाव हैं, अगर हम किसी को बुरा ही नहीं समझे तो सभी एक समान ही लगेंगे और हम सबके साथ अच्छा व्यवहार ही करेंगे| हमारे साधुओं के भी निर्ग्रन्थ भाव होते हैं उनके संपर्क में आकर हमारे भाव भी बदल जाते हैं और अविकार हो जाते है| मा श्री जी ने शिक्षक और गुरु के बीच में भी भेद बताया, शिक्षक वह होता है जो किताब में लिखी बातों को समझा सके जबकि गुरु तो फलदार पेड़ की तरह है जो अपने फल देने के लिए झुक जाता है, गुरु ज्ञान का सागर होता है जो अपना ज्ञान बांटना चाहता है, निरग्रंथ भावों के साथ| 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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