पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ...
सभी को सादर जय जिनेंद्र
आज ऋषभांचल युवा संगम की मासिक प्रक्षाल एवं बैठक बहुत ही अच्छे से ऋषभांचल ध्यान योग के केंद्र पर संपन्न हुई सभी सदस्यों ने आदिनाथ भगवान का प्रक्षाल किया तत्पश्चात विशेषता पूर्व रत्नमई प्रतिमाओं का प्रक्षालन किया बहुत ही आनंद से प्रक्षाल की सारी क्रियाएं संपन्न हुई।
मां श्री कौशल जी ने आज सबसे पहले उपस्थित सदस्यों की जिज्ञासा और शंकाओं का समाधान किया। सबसे पहले प्रशांत जी ने पूछा कि क्या मां श्री इस जन्म में प्राप्त किए हुए संस्कार हमारे साथ दूसरे भवों में जाते हैं तो , इस जिज्ञासा का उत्तर देते हुए मां श्री जी ने बताया कि यह संस्कार जो हम ग्रहण करते हैं यह हमारे सबकॉन्शियस माइंड में सेव रहते है ,यह हमारे अंदर सेव रहता है और जब हम यह पर्याय बदलते हैं तो जैसे सांप केचुली छोड़ता है लेकिन वह उसमें कोई बदलाव नहीं आता वैसे का वैसा ही रहता हैं ऐसे ही हमारे संस्कार हमारे साथ रहते हैं । इसके बाद आर्यन जैन ने पूछा कि महाराज जी लोगों के आगे १०८ और आर्यिका माताजी के आगे १०५ क्यों लगाते हैं ,और भी सदस्यों ने अलग अलग जिज्ञासाएं मां श्री के समुख रखी जिसका उत्तर देकर मां श्री ने सबकी जिज्ञासा शांत की ।
मां श्री हम युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए पहले धर्म से परिचित करा रही हैं । धर्म के सिद्धांतों और मूल विषय को बहुत ही सहजता से और ऐसी सरल भाषा में हमें समझा रही हैं की समझ में भी आ रहा हैं और जानने की जिज्ञासा भी बढ़ती जा रही हैं ।एक जो धर्म के नाम से डर था वह कम होता जा रहा हैं ।
आज का विषय मां श्री ने प्रक्षाल रखा था । सबसे पहले मां श्री ने बताया की हम प्रक्षाल किसका करते हैं । अरिहंतों को तो स्नान की जरूरत होती ही नहीं उनके तो सब विकार खत्म हो जाते हैं , और उनका शरीर तो सुगंधमयी हो जाता हैं ,वो जहां बैठते हैं उसे सुगंध कूटी या गंध कूटी कहा जाता हैं ।ऐसे ही मुनि महाराज को भी स्नान की आवश्यकता नहीं होती ना ही वह करते हैं । तो हम प्रक्षाल क्यों करते हैं । हम प्रक्षाल करते हैं प्रतिमा का ,और प्रतिमा होती हैं पाषाण या धातु की । हम कागज की या मिट्टी को प्रतिमा नहीं बनाते ना ही उन्हें प्रतिष्ठित करते क्योंकि उनमें वह सामर्थ्य नहीं होता इतना पावर नहीं होता की वह प्रतिष्ठित हो सके । पाषाण और धातु में इतना पावर होता हैं की वह सूर्यमंत्र पाकर प्रतिष्ठित हो सके और उनके proton aur electron चार्ज हो सके , और जब जल इस प्रतिमा को छूकर आता हैं तो वह सर्व औषधि बन जाता हैं उसे हम गंधोदक कहते हैं । यह हम अपने मस्तक पर गले पर छाती पर और नाभि से ऊपर ऊपर लगाते हैं तो यह औषधि को तरह हमारे सभी विकारों को।खत्म करता हैं । मां श्री जी ने इसी संदर्भ में बताते हुए यह भी कहा की इस शरीर को बुरा नहीं समझना चाहिए यह आपकी वह गाड़ी हैं जो आपको सही मार्ग पर चलने में सहायक होगी ,शरीर बुरा नहीं हैं इसके अंदर कैसे विचारों वाली आत्मा हैं वह नियत करेगी कि कैसे कार्य आप करोगे । जबतक हैं तब तक इससे अच्छे से रखो जिससे यह आपको स्वाध्याय में सहायक हो । और जब यह खतम होने लगे तब इससे मोह छोड़ दो । अगर आप संसार का सच्चा स्वरूप समझ जाओगे तो मोह छोड़ने में दिक्कत नहीं होगी और यह अभ्यास से होगा । स्वाध्याय से आपको हिम्मत और समझ आजाएगी दुखों के निवारण की , एक उदाहरण देते हुए मां श्री ने बताया की एक खलीफा थे यूने दोनो पुत्रों को अकस्मात मृत्यु हो गई तो उनकी पत्नी ने दोनो को एक कमरे में लिया दिया । जब खलीफा घर आए तो दूसरे कमरे में उनकी पत्नी ने भोजन कराया और फिर उनसे पूछा किसीने हमें कुछ वर्ष पूर्व कुछ अपना सम्मान दिया था आज वो वापस मांग रहे हैं उन्हें देदू क्या । तो खलीफा ने कहा अगर लिया था तो सहजता से वापस देदो। तब वह उन्हें उनके कमरे में ले गई और कहा की हमारे दोनो पुत्र हमें दिए थे कुछ समय पूर्व आज वापस लेलिए। सोच और विचार वर्तमान परिस्थिति में जो सुख नहीं हैं उसे भी दुख बना देते हैं और स्वाध्याय उन्हें समझने की उनके निवारण की राह बताता हैं । मेहमान आए थे समय होगया चले गए हम सोचते रहें मेरी मां चली गई मेरा भाई चला गया और बिना बात विलाप करते रहें तो क्या समझदारी । जैसे रेलगाड़ी के डिब्बों के बीच में लगी हुई स्प्रिंग यात्रियों को झटके से बचाती हैं ऐसे ही स्वाध्याय और धर्म इंसान को दुखों और कर्मों से बचाता हैं ।मां श्री ने बहुत बताया लेकिन मैं अल्पज्ञ जितना समझ सका उसमें से भी थोड़ा लिख सका । अरिहंत पाठ के साथ सभा का समापन हुआ ।प्राची दीदी और दीपाली दीदी को सभी व्यवस्थाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
Shri Rishbhanchal Dyan Yoga Kendra
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