Maa Shri Kaushal ji Udhyodhan

पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ... 

सभी को सादर जय जिनेंद्र

स्वस्ति श्री प्रथम भट्टारिका परमपूज्यगुरू मॉ श्री कौशल जी के पावन युगल चरण कमल में वन्दनामी| माँ श्री जी ने अपने ज्ञान की वर्षा करते हुए बड़े सरल तरीके से सम्यक दर्शन के बारे मैं समझाया जो की मोक्ष मार्ग की प्राप्ति के लिए एक जटिल व अहम् विषय है सम्यक अर्थात मूल स्वरुप (बिना किसी मिलावट के) दर्शन अर्थात केवल देखना नहीं है, जानना है, अपनी अंतर आत्मा से महसूस करना है| जैसे की अगर दाल में नमक देखने को कहे तो केवल आँखों से देख कर नहीं बल्कि चखकर और अपने ज्ञान के माध्यम से पता लगाया जाता है| आगे बताते हुए माँ ने समझाया की किसी वस्तु का एक मूल स्वरुप होता है और फिर मिलावटी स्वरुप हो सकते है, जैसे, पानी और दूध का अपना एक मूल स्वरुप है फिर मिल जावे तो लस्सी एक अलग ही स्वरुप बन जाती है| उस लस्सी मैं से दूध और पानी के चरित्र/स्वरुप की पहचान कर लेना ही सम्यक दर्शन है जो बिना सम्यक ज्ञान और चारित्र के अधूरा है| जब हमे कोई ज्ञान देवे तो वह ज्ञान जबतक पूरा नहीं माना जा सकता जबतक उसका अनुभव ना हो जाए| धार्मिक ग्रन्थ भी मोक्ष मार्ग की ओर इशारा करते है, लेकिन मोक्ष मार्क की असल सीढ़ी नहीं, वह तो अनुभव से ही संभव हो सकता है| जैसे की सुख, दुःख, प्रिय, अप्रिय महसूस किए जा सकते है, अनुभव किए जा सकते है, वैसे ही आत्मा भी अनुभव ही की जा सकती है|  और विस्तार से बताते हुए माँ श्री जी ने एक उदहारण दिया- एक नाविक नदी पार करता है नाव के द्वारा, एक नाव भी नदी पार करती है नाविक के द्वारा, दोनों का अपना अपना मूल स्वरूप है| दोनों एक दूसरे पर आश्रित है, दोनों आपस मैं बंधे हुए है, नदी पार करते समय कठिनाइयां भी आ सकती है जैसे नाव मैं छेद हो जाये तो दोनों ही डूब जायेंगे इसिलए उसको सही करना होगा और उसको सही करने के लिए सबसे पहले समस्या कहाँ है उसको जानना ही संवर है| फिर उसको रोकने के लिए सही वीधी अपनाना होगा नहीं तो छेद बढ़ भी सकता है, उसको रोकना निर्जरा है यानि समस्या का समाधान| आखिर मैं नाविक और नाव दोनों ही नदी पार कर लेते है और फिर अलग हो जाते है, जिसका तात्पर्य मोक्ष से है| हमारा शरीर और आत्मा भी ऐसे ही है|  माने मोक्ष पाने के सात तत्व है -

  • १. मूल - जीव 
  • २. मूल - अजीव 
  • ३. आश्रव 
  • ४. बंध 
  • ५. संवर 
  • ६. निर्जरा 
  • ७. मोक्ष 

|| तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् || अंत मैं माँ श्री ने एक और सूत्र बताया - || सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः || इस सूत्र मैं सबसे एहम शब्द सम्यक है, उसके बिना इस सूत्र का पूरा अर्थ ही बदल जाता है| अपनी वाणी को विराम देते हुए माँ श्री जी ने आगे की बैठक मैं इन सात तत्वों पर प्रकाश डालने की बात कही और सबको मोक्ष प्राप्ति का आश्रीवाद दिया| प्राची दीदी एवं दीपाली दीदी ने हमेशा की तरह सबको स्वादिष्ट नाश्ता करवाया। माँ श्री जी की लम्बी आयु की हम कामना करते है। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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