Maa Shri Kaushal ji Udhyodhan

पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ... 

सभी को सादर जय जिनेंद्र

आज की कक्षा में पूज्य मां श्री ने बताया कि हमारा धर्म पूर्ण वैज्ञानिक है वैज्ञानिक भौतिक शोध करते हैं और भौतिक चीजों को पूछते समझते हैं अध्यात्मिक खोज अंतर के विज्ञान को समझती है और अंतर सुख के स्रोत का पता लगाती है।  अब दो चीज हैं केंद्र और परधि,जैसे गाड़ी का पहिया हैं अगर वह केंद्र से हट जाए तो वह सही कार्य नहीं कर सकता और गाड़ी को बैलेंस नहीं कर सकता ऐसे ही अगर इसकी परिधि खराब हो तो भी वह सही से काम नहीं करेगा । तो हर चीज की दोनो केंद्र और परिधि सही रखनी पड़ती हैं । वैज्ञानिकों का मानना है कि हर तत्व ऊर्जा से पर्याप्त है और हम कहते हैं की हर चीज में तरंगे हैं इसमें मूलतः कोई अंतर नहीं है जब हम ऊर्जा को सूक्ष्म कर देते हैं तो वह तरंग बन जाती है और जब हम तरंगों को स्थूल कर देते हैं तो वह ऊर्जा बन जाती है ब्रह्मांड में एक तत्व दूसरे तत्व को अपनी तरफ आकर्षित करता है, अब जो तत्व ज्यादा पावरफुल होता है ताकतवर होता है वह दूसरे तत्व को अपने जैसा बना देता है। अब इस विज्ञान का मर्म समझे तो  अगर हम डाकू की संगत में बैठेंगे तो हमें वैसे ही विचार आएंगे और अगर हम साधु की संगत में बैठेंगे तो हमें सुख और शांति का अनुभव होगा अगर डाकू साधु की संगत में बैठे तो क्या डाकू साधु बन जाएगा या साधु डाकू बन जाएगा दोनों ही चीज असंभव नहीं है जो ज्यादा शक्तिशाली होगा जिसका अपने गुणों में ज्यादा पकड़ होगी वह दूसरे को अपने अनुसार बना देगा। आगे मां श्री ने बताया जैसे आपने दही को बिलोते हुए देखा है दही में से मक्खन अलग हो जाता है और छाछ अलग हो जाता है यह होता है घर्षण से ऐसे ही जब दो शक्ति मिलती हैं तो उनमें घर्षण होता है और जो ज्यादा शक्तिशाली शक्ति होती है और दूसरी शक्ति को अपने अनुसार चेंज कर देती है जब घर्षण होता है । हर अणु दूसरे अणु के चारो तरफ घूम रहा हैं घर्षण हो रहा हैं जिसकी पावर ज्यादा होती वह अणु दूसरे को अपने जैसा बना लेता हैं । जब अणु ज्यादा संख्या में होते हैं तो उन्हें घूमने का स्थान नहीं मिलता और वह चीज बन जाती हैं सॉलिड । अब जैसे दिल्ली से अलग-अलग ऑडियो फ्रीक्वेंसी की तरंगे प्रसारित की जा रही है क्या वह हम सुन सकते हैं ? नहीं ,लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यहां पर वह तरंगे उपस्थित नहीं है। वह तरंगे यहां पर उपस्थित हैं लेकिन उनको जब सही उपकरण मिलता है , जैसे रेडियो मिलता है मोबाइल मिलता है जो की ध्वनि की फ्रीक्वेंसी को समांतर फ्रीक्वेंसी से मैच करता है,  तो,वह फ्रीक्वेंसी उससे जुड़ जाती है और हम उसे सुन पाते हैं जैसे हम रेडियो फ्रीक्वेंसी सेट करते हैं ना, तो रेडियो वही फ्रीक्वेंसी पैदा  करता हैं जब दोनों मिल जाती हैं तो वह चैनल हम सुनते हैं। यहां पर रेडियो दो काम करता है एक तो फ्रीक्वेंसी पैदा कर के समान फ्रीक्वेंसी से कनेक्ट करता हैं और फिर उसी फ्रीक्वेंसी को हमारे अनुसार कन्वर्ट करके प्रसारित करता है क्योंकि हमारे कान सभी ध्वनियों को सुनने में सक्षम नहीं है। अगर वह सभी तरंगे सुनने में सक्षम होते तो हम सो भी नहीं पाते, क्योंकि हर जगह हजारों तरंगे  प्रसारित हो रही हैं, कुछ वहां पर ऑलरेडी हैं, कुछ प्रसारित हो चुकी हैं लेकिन हमारे  कान उन्हीं तरंगों को सुन सकते हैं जो की उनकी रेंज में हैं मतलब जो ९० से ९८  decimal तक की हैं । अब जो तरंगे प्रसारित हो रही हैं वह हमारे रेडियो ने हमें सुना दी लेकिन क्या उसे हम पुनः पुनः सुन सकते हैं हां सुन सकते हैं अगर हम उन तरंगों को रिकॉर्ड करने अपने मोबाइल में या वीडियो में तो हम उसे पुनः पुनः सुन सकते हैं। अब बताओ क्या हम मूर्ति की पूजा करते हैं नहीं हम मूर्ति की पूजा नहीं करते हम उसमें जो तरंगे रिकॉर्डिंग हैं हम उनकी पूजा करते हैं हम उनसे जुड़ना चाहते हैं हम उनसे अपनी फ्रीक्वेंसी मैच कर कर जोड़ने की कोशिश करते हैं। हम उस मूर्ति की अराधना भी इसलिए करते हैं कि हम जो अरिहंतो की तरंगों को उस मूर्ति में रिकॉर्ड करना चाहते हैं और जब हम उस मूर्ति को छूते हैं उसके पैरों के अंगूठे को छूते हैं तो जैसे कि मोबाइल का चार्जर प्लग में लगाते ही चार्ज हो जाता है ऐसे ही हम उस प्रतिमा जी के अंगूठे के छू के चार्ज हो जाते हैं ।हमारी तरंगे चार्ज हो जाती हैं। अब यहां पर गौर करने लायक बात है कि हर प्रतिमा में वह चार्ज नहीं होता, हर प्रतिमा इतनी शक्तिशाली नहीं होती यह तो किसी किसी प्रतिमा में होता है जिसका की निरंतर आराधना की जाए। अब जैसे चार्ज करके आप टॉर्च को रख दें तो दो 2 दिन 3 दिन तक वह चार्ज रहेगा उसके बाद वह अपने आप डिस्चार्ज हो जाएगी। इसलिए जिस प्रतिमा का निरंतर आराधना होती है उसका चार्ज और उसका चमत्कार बढ़ता जाता है। 

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