पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ...
सभी को सादर जय जिनेंद्र
माँ श्री कौशल जी ने बड़े ही सरल शब्दों मैं आज 10 July 2025 को गुरु पूर्णिमा के दिन, गुरु पूर्णिमा का हम सभी को हर बार की तरह अलग ढंग से महत्व समझाया| उसका सार आप सभी तक पहुंचने की कोशिश कर रहा हूँ|
हम लोग बहुत सारे त्यौहार मानते हैं, अक्सर रोज़ ही कोई न कोई त्यौहार होता है किसी न किसी जाती के हिसाब से| लेकिन ऐसा पहले नहीं होता था, अगर मैं 70 साल पहले की बात करूं तो उस समय जैन धर्म के हिसाब से बहुत ही कम त्यौहार मनाया करते थे, जैसे की महावीर जयंती, दिवाली, होली, कोई कोई करवा चौथ बना लेता था| लेकिन यह गुरु पूर्णिमा भी एक त्यौहार है यह आत्म शुद्धि का त्यौहार है ऐसे ही दसलक्षण पर्व भी आत्म शुद्धि का त्यौहार है, बाकी और त्योहार मैं तो आप खुशियां मना सकते हैं, तरह-तरह के भोजन करते हैं, मिठाइयां खाते हैं, लेकिन यह ऐसे त्यौहार है जिसमें आप आत्म शुद्धि करते हैं, यह मेरी समझ से सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है|
पूरे संसार में सिर्फ एक जैन धर्म ही ऐसा है जिसमें कहा गया है कि तुम भगवान बन सकते नहीं, तुम भगवान हो, तुम भगवान के शिष्य नहीं, तुम भगवान हो, तुम में वह सभी गुण हैं जो एक भगवान में होते हैं| आज गुरु पूर्णिमा है, भगवान महावीर को जब ज्ञान की बोधि हुई, केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई, जम्भिक गांव मैं एक नदी के किनारे, वृक्ष के नीचे, तो उसके बाद भगवान महावीर स्वामी की कई महीनो तक वाणी नहीं खीरी| वह विहार करते रहे, समोशरण लगते रहे, सभी जीव उनकी ओर निहारते रहे लेकिन उन्होंने प्रवचन नहीं दिये| तब इंद्र ने सोचा की केवल ज्ञान तो किसी किसी को ही होता है और उस ज्ञान को न बाटा जाये तो उसका पाप लगेगा, तब इंद्र ने सोचा और पता लगाया की ऐसा व्यक्ति अभी तक नहीं मिला जो भगवान की वाणी को समझ सके| तब उन्होंने जाना की इंद्रभूति में वह क्षमता है, वह उसके पास गए और उनसे एक प्रश्न पूछा, इंद्रभूति को अपनी ज्ञान पर अभिमान था लेकिन वह उसका उत्तर नहीं बता पाए, तो उसको छुपाने के लिए उन्होंने कहा कि तेरा गुरु कौन है मैं उन्ही को इसका उत्तर दूंगा| तब इंद्र ने कहा मेरे गुरु भगवान महावीर हैं और अपने साथ उनके समोशरण में ले गए| जैसे ही उन्होंने मान स्तंभ देखा जैसे ही उन्होंने भगवान महावीर स्वामी की झलक देखी उनका अभियान अंदर से गलने लगा, मानो जैसे सूर्य की एक किरण से सारी काली रात छट गई हो, आज तक उन्होंने काफी ज्ञानियों से मुलाकात की, किसी की, वेशभूषा धोती दुपट्टे की, किसी की लंगोट की, किसी की गमछा की, लेकिन ऐसी व्यथा उन्होंने पहली बार देखी जो पूर्ण नग्न अवस्था थी| महावीर भगवान के दर्शन पाकर मानो उनका सारा अभिमान चूर-चूर हो गया और वह उनके आगे नतमस्तक हो गए, और इंद्रभूति ने तभी उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया| इंद्रभूति को उसी समय, सम्यक्दर्शन की प्राप्ति हो गई| वह आज का दिन है जिसको हम याद करके गुरु पूर्णिमा मानते हैं|
एक होता है उपदेश जो सभा मैं दिया जाता है, एक होता है भाषण जो नेता देता है और एक होती है सीख जो गुरु शिष्यों को देते है| शिष्य का पर्यायवाची सिख भी होता है और सिख को सीख भी बोल सकते है| शिष्य जो सीख सके| गुरु पूर्णिमा का मतलब है गुरु जो अपने आप में पूर्ण हो| गुरु बहुत प्रकार के हो सकते है, लेकिन हम यहां आध्यात्मिक गुरु की बात कर रहे हैं|
शिष्य तो बहुत मिल जाते हैं लेकिन गुरु का मिलना बहुत मुश्किल है, गुरु बनाना बहुत मुश्किल है, एक बार गुरु को बना लिया तो उसके लिए समर्पण भाव बहुत जरूरी है उसमें तर्क वितर्क नहीं होता, गुरु ने जो कह दिया वह कह दिया| एक बार की बात है, एक शिष्य गुरु के पास आया, गुरु ने उसको एक कमरा दिया कहा कि इसमें आप ध्यान लगाओ और उसके बाद मेरे पास एक महीने बाद आना, जब एक महीना गुजरा तो गुरु के पास आया, गुरु ने पूछा और कोई दिक्कत तो नहीं हुई? शिष्य ने कहा नहीं गुरुजी वैसे तो सब ठीक था लेकिन खिड़की में से बारिश का पानी बहुत आता है, ठीक है तू जा वो ठीक हो जायेगा| एक महीने के लिए ध्यान लगा| फिर 1 महीने बाद आया गुरु ने फिर पूछा अब कोई दिक्कत तो नहीं, सब ठीक? वैसे तो सब ठीक है लेकिन वहां चीटियां बहुत आती है| तात्पर्य यह है की उसमें तर्क वितर्क प्रश्न बहुत है शिष्य वह शिष्य नहीं जो गुरु से तर्क-वितर्क करें, गुरु ने जो कह दिया उस बात को मान लेना ही शिष्य की भलाई है|
भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष को 6 महीने हो गए, तो ज्ञान विलुप्त होने लगा, धीरे-धीरे लोग भूलने लगे, पहले जो सुन लेते थे लोगों को याद हो जाता था लेकिन फिर लोगों की बुद्धि धीरे-धीरे सीमित होने लगी, तब धरसेनाचार्य महाराज ने यह सोचा की इस ज्ञान को लिपिबद्ध करना चाहिए| तो उन्होंने दो मुनियों, आचार्य भूतबली और आचार्य पुष्पदंत को बुलाया और उन्होंने दोनो को अलग अलग मंत्र दिए और कहा कि इन मंत्रो का ध्यान करो, जब दोनों ने ध्यान किया तो दोनो को देवियां प्रकट हुई लेकिन यह दोनों देवियों में कुछ कमी थी, एक देवी की आंख नहीं थी और एक देवी के हाथ नहीं थे| तो उन्होंने मंत्र को ध्यान से पढ़ा तो उसमें अक्षरों की कुछ कमी नजर आई| उसको सुधार कर उन्होंने फिर ध्यान किया तो बहुत सुंदर देवियां प्रकट हुई और उन्हें शक्तियां प्रदान की| इस प्रकार, आचार्य भूतवलि और आचार्य पुष्पदंत ने आचार्य धरसेनाचार्य की सैद्धान्तिक देशना को श्रुतज्ञान द्वारा स्मरण कर, षट्खण्डागम नामक महान जैन ग्रंथ के रूप में रचा। जिसको आज हम जिनवाणी कहते हैं| हमारे हिंदी भाषा में जितने भी अक्षर हैं वैसे अन्य किसी भाषा में नहीं, जो मूर्तियां होती है उनमें भी 49 अक्षर लिखे जाते हैं| इन बीज अक्षरों में बहुत शक्ति होती है| इन बीज अक्षरों से आप भी शक्तियां पा सकते है| रिद्धि और सिद्धि - ६४ रिद्धि जो हम अक्षरों से लेते हैं और फिर उन्हें सिद्ध कर सकते है| मैं आप सबको यह कहूंगी कि सबसे पहला बीज अक्षर जो ओम है जिसको सारे संसार के सभी धर्म मानते हैं उसको ध्यान करो, अपने मस्तिष्क के बीचो-बीच सबसे महतवपूरण पॉइंट होता है जो सारे शरीर को कंट्रोल करता है, हमारे शरीर में बहुत सारे बिंदु होते हैं, आप हर एक पॉइंट को ऑन कर सकते हो और हर पॉइंट की अपनी खुद की शक्ति होती है, जैसे कान के बिंदु को ऑन करने पर आपको दूर का सुनने लगेगा, ओम में जो ध्वनि होती है वह पूरे शरीर के सारे बिंदुओं पर निरंतर चोट करती रहती है, संसार में एक गूंज है, वह गूंज ओम की गूंज है| आज वैज्ञानिक, ध्वनि पर शोध कर रहे हैं और ध्वनि से ही सारा संसार चल रहा है| मौन रहते हुए एकांत मुद्रा में ओम का ध्यान करना चाहिए, मौन मुद्रा बहुत प्रभावशाली मुद्रा होती है जब आप मौन होते हैं तो आपको शक्तियां मिलती है आपके अंदर जो विचार होते हैं वह सामने आने लगते हैं वह बोलने लगते हैं| आज गुरु पूर्णिमा के दिन मैं आप सभी को ॐ बीज अक्षर का ध्यान करने के लिए कहती हूँ|
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