पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ...
सभी को सादर जय जिनेंद्र
इस माह के उद्बोधन में मां श्री ने हमें कई सार बातें बताई सबसे पहले उन्होंने बताया भाषा का महत्वकिसी से भी बात करने के लिए या किसी को भी अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए हम अपने भाषा का इस्तेमाल करते हैं लेकिन भाषा बड़ी सीमित होती है अगर आप गुस्सा है तो सिर्फ भाषा से यह बात नहीं प्रकट कर सकते आपको इशारों का इस्तेमाल करना पड़ता है आपके हाव-भाव से लोग समझते हैं कि आप गुस्सा है मां श्री ने इसके ऊपर एक एग्जांपल देते हुए समझाया अगर आपके कमरे में एक कबूतर आ जाए और आप उसको भगाने के लिए हाथ का इशारा करते हैं तो भागने से पहले कबूतर आप के चेहरे के भाव देखता है आपकी आंखों में देखता है वह समझता है कि इंसान गुस्से में है कि पास बुला रहा है फिर मां श्री ने दूसरा उदाहरण दिया जब हम ट्रेन में सफर करते हैं तो किसी के पास बैठकर घंटो का सफर का पता ही नहीं लगता यही कुछ लोगों के पास आते ही उनसे चिड़ मच ने लगती है उनके पास बैठने का मन नहीं करता अर्थात किसी भी भाव को प्रस्तुत करने के लिए भाषा के अलावा मुद्रा भी काफी जरूरी होती हैइसके बाद मां श्री ने बताया कि सुख कैसा होना चाहिए१. सुख स्वाधीन होना चाहिए ~ अर्थात जो कोई ले ना सके२. सुख पूर्ण होना चाहिए३. सुख स्थाई होना चाहिए ~ अर्थात फिर छूटे ना
ऊपर की परिभाषा से हम सुख को शब्दों में तो समझ गए हैं लेकिन अभी सुख से परिचय नहीं हुआ हैहम अगर अनेक किताब पढ़ें तब भी हमें सुख के पर्यायवाची शब्दों से ही ज्ञान होगा फिर भी असली अर्थ नहीं मिलेगा
अगर हमें किसी बच्चे को समझाना हो की जीव क्या है और हम यह कहें की जो चलता है वह जीव है तो बच्चा कह सकता है कि रेलगाड़ी भी जीव हैइसके बाद मां श्री ने बताया कि 18 महा भाषा होती है और 700 लघु भाषा होती हैं और भगवान को सभी समझ आती हैं भगवान की भाषा को दिव्य ध्वनि कहते हैं और वह सभी जीव जंतु को समझ आती है क्योंकि यह अनुभव की भाषा होती है
मां श्री ने बताया कि छोटा बच्चा भी पिता के भाव से सब समझ आता है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है अर्थात तरंगे अनजान भी समझ सकते हैंमां श्री ने यह सब बातें इसलिए बताइए की मंदिर में दर्शन कैसे करना चाहिए जिस प्रकार हम टीवी एकटक होकर देखते हैं अगर कोई बोले तो उसको चुप होने को कहते हैं पूरा ध्यान लगाकर देखते हैं उसी प्रकार दर्शन भी बिना कुछ बोले करना चाहिएमां श्री ने बताया की तरंगे पैर की उंगली और हाथ की उंगली से बहती हैं जैसे कि रेडियो में जब हमारी फ्रीक्वेंसी मैच होती है तब आनंद आता है उसी प्रकार जब हमारी फ्रीक्वेंसी भगवान से मैच होगी तो आनंद आएगा हम भगवान को नमस्कार अपने लिए करते हैंइसके बाद मां श्री ने बताया कि अगर कुए से ज्यादा पानी निकालना हो तो बाल्टी को पूरा डुबोना पड़ता है उसी प्रकार उर्जा लेने के लिए हमें भी अष्टांग नमस्कार करना होता है।
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