Maa Shri Kaushal ji Udhyodhan

पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ... 

सभी को सादर जय जिनेंद्र

आज का प्रश्न था कि हमारे 24 तीर्थंकर ही क्यों होते हैं, ज्यादा और कम क्यों नहीं? और विदेह क्षेत्र में 20 तीर्थंकर क्यों होते हैं?
हमेशा की तरह मां श्री जी ने बड़े विस्तार और सुंदर तरीके से समझाते हुए बताया की हर काल की एक क्षमता होती है, जिस काल में तीर्थंकर हुए उसकी क्षमता केवल 24 तीर्थंकर बनाने की होती है। उदाहरण के रूप में जैसे एक आम का वृक्ष कुछ ही साल तक फल दे सकता है। ऋषभनाथ भगवान की आयु 84 लाख वर्ष पूर्व थी, वही वर्धमान भगवान की केवल 72 वर्ष रह गई थी। हम भोग भूमि पर रहते हैं यहां 6 काल होते हैं- सुखमा-सुखमा, सुखमा, सुखमा-दुखमा, दुखमा-सुखमा, दुखमा, दुखमा-दुखमा। ये 6 काल का चक्र निरंतर चलता रहता है। अभी दुखमा काल चल रहा है। जिस काल में तीर्थंकर हुए वह दुखमा-सुखमा काल था। आगे आगे मनुष्य की आयु कम होती जाएगी, केवल 20 वर्ष, धर्म भी समाप्त हो जाएगा, उसके बाद महाप्रलय आएगी जिस में 7 प्रकार की वर्षा होगी, जिसमे पहले विष की वर्षा जिसमे कुछ ही जीव जीवित रह पाएंगे जो आगे चलकर दोबारा जीवन चलाने में सहभागी होंगे। फिर 7 प्रकार की वर्षा होगी, जिसमें अमृत वर्षा, रस वर्षा इतियादि वर्षा होंगी जिससे दोबारा जीवन पनपेगा।हमारे जैन धर्म में बहुत एतहासिक बातों का विवरण है। बताया गया है कि सुखमा-सुखमा काल में 3 दिन में एक बार ही भूख लगती थी, वह भी एक छोटे बेर बराबर फल खाने से शांत हो जाती थी। मनुष्य का जन्म लेते ही माता पिता की मृत्यु हो जाती थी और शरीर हवा में क्षीण हो जाता था, जनसंख्या काफी कम होती थी। केवल 49 दिनों में मनुष्य तरुण हो जाया करता था। 10 प्रकार के कल्प वृक्ष हुआ करते थे जिनसे सारी इच्छा पूरी हो जाती थी। फिर सुखमा काल आया, जहां दो दिन में ही भूख लगने लगी और एक समय ऐसा आया जब कल्प वृक्ष समाप्त हो गए और भूख प्यास भी ज्यादा हो गई। फिर ऋषभनाथ भगवान ने जीवन यापन करने के लिए सभी कला सिखाई, जैसे की कृषि, गणित, अक्षर, कानून व्यवस्था आदि।आगे बताते हुए कहा कि हम आर्य खंड में रहते हैं हमारे ऋषि-आचार्यों ने सब कुछ प्रत्यक्ष देखा था अपने नेयन चक्षु द्वार जो बिल्कुल सत्य है, लेकिन किसी मीडिया (यंत्र) के ना होने की वजह से वह किसी और को यह सब दिखा नहीं सकते। इसीलिये हर कोई उन बातों को सत्य नहीं मानता। आज के वैज्ञानिक जो भी कहते हैं वह उनको किसी माध्यम से प्रत्यक्ष दिखा सकते हैं जिस वजह से हम उन्हें सत्य कहते हैं, लेकिन समय-समय पर और अलग अलग कोण से देखने पर बात बदल जाती है, जैसे की एक लकड़ी जो 4 फीट की दिखती है वही लकड़ी पानी में छोटी दिखाई देती है, मतलब जैसा माध्यम दिखाना चाहता है वैसा ही हम मान लेते हैं लेकिन जरूरी नहीं वे सत्य हो।दूसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए मां ने बताया कि विदेह क्षेत्र में पांच क्षेत्र होते हैं, हर क्षेत्र में चार खंड होते हैं और हर खंड में 8 भुखंड होते हैं सभी 4 खंड में एक तीर्थंकर हमेशा विहार करते रहते हैं इसीलिये कहा गया है विद्यामान श्री 20 तीर्थंकर और कहां गया है विहरमान(विहार करने वाले) श्री 20 तीर्थंकर। इसिलए कम से कम हुए - 5 क्षेत्र  x 4 खंड = 20 तीर्थंकर ज्यादा से ज्यादा हो सकते है - 5 क्षेत्र x (4 खंड  x 8 भूखंड) = 160 तीर्थंकरऔर भी बहुत ज्ञान बरसामाँ श्री जी ने अपनी वाणी पर विराम देते हुए सबको आश्रीवाद दिया और जो सदस्य नहीं आये थे उन्हें भी याद किया। प्राची दीदी एवं दीपाली दीदी ने हमेशा की तरह स्वादिष्ट नाश्ता करवाया। माँ श्री जी की लम्बी आयु की हम कामना करते है। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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