पूज्या मां श्री के चरणों में बारंबार वंदन ...
सभी को सादर जय जिनेंद्र
पूज्या मां श्री कौशल जी की जय सभी को सादर जय जिनेंद्र
हमारा देश त्योहारों का देश है, यहाँ हर रोज़ कोई न कोई त्योहार होता है, लेकिन सभी त्यौहार या तो किसी महा पुरुष या व्यक्तिियो से संभंतित होते है या फिर अलग अलग ऋतुओ से संभंतित होते है, इन सबसे आपसी सम्बन्ध मजबूत होते है, भाई चारा बना रहता है| लेकिन एक त्यौहार ऐसा है जो हमारी आत्म शुद्धि का पर्व होता है, दस लक्षण पर्व|
आगे माँ श्री जी बताती है की,
जो राम लीला मैं राम का पात्र करता है लोग उनको राम भगवान कहते है| हमारे देश की ये परंपरा है की जो राम का पात्र करता है उसके प्रधान मंत्री भी चरण छूता है, और वो आश्रीवाद देते है| क्या वो भगवन राम है? नहीं? जब नहीं है तो हम उनके चरण क्यों छूते है? और जब राम लीला समाप्त हो जाती है तब तो उनके चरण कोई नहीं छूता, क्यों? व्यक्ति तो वही है.. जब तालियां बजाते है सीता की दृंढ़ता पर, तब वो तालियां किसके लिए होती है? जो अभिनय कर रहा है उसके लिए या जो अभिनय है उसके लिए? जो अभिनय है उसके लिए होती है... हमारे धर्म मे उसको स्थापना कहा है| हमने इसमें राम की स्थापना कर दी, वो राम नहीं है लेकिन स्थापना कर दी| पूछने पर की क्या वही राम है? तो उत्तर मिलेगा की नहीं वो राम नहीं है लेकिन तब भी उनके हाथ जोड़ते है क्योंकि उतने समय के लिए उस व्यक्ति मैं राम की स्थापना कर दी| जैसे की राम की मूर्ति राम नहीं है लेकिन उसमे उनकी स्थापना कर दी तो उनको पूजते है| स्कूल मैं जो हम पढाई पड़ते है, और अगर उसमे हम किसी महा पुरुष के बारे मैं पढ़ते है तो उसके जैसा आचरण करने लग जाते है| जैसे राम का किरदार करने वाला, राम जैसे ही आचरण करता है| जो भगवान महावीर का किरदार करता है उसको भी हम भगवान् महावीर कहेंगे, क्या १ समय भोजन करने पर, १ आसन पर बैठने पर, वस्त्र त्यागेने पर, क्या वह भगवान् महावीर बन गया? नहीं, वह भगवान् महावीर का आचरण कर रहा है लेकिन यह महावीर नहीं है| कोटि कोटि सदियों से भी राम का पात्र करता रहा हो, महावीर का पात्र करता रहा हो, तो भी हम मन मे यही समझते है की यह अभिनय है, यह असली राम नहीं है, यह असली महावीर नहीं है, यह असली भगवान् नहीं है|
इसीलिए मैंने विभाजन किया है, शिक्षा 2 प्रकार की होती है -
१. आजीविका की शिक्षा
२. धर्म की शिक्षा - जैसे सुबह उठकर बड़ो के चरण छूना, जय जिनेन्द्र कहना, रात्रि भोजन नहीं करना, रोज मंदिर जाना, अभक्ष भोजन नहीं खाना | इस सबको सदाचार कहते है, आचरण कहते है| अगर हमने किसी साधु से रात्रि भोजन के त्याग का नियम लिया तो वह आचरण है| वह धर्म नहीं है|
क्या आदिनाथ भगवान् की तरहे, अगर कोई ६ महीने तक आहार नहीं करेगा तो क्या वो भी आदिनाथ भगवान् बन जायेगा? वह सभी, जो ये सारी क्रियाएं करते है उनमे से सभी जिन भगवान् नहीं बने| जिसने दूसरे आचरण नहीं किया बल्कि अंदर से अहिंसा प्रकट हुई है, जिन भगवान् वह बना है, जिनके ऊपर से नहीं लादी गई, जिसने ऊपर से नक़ल नहीं की, जबकि हम नक़ल करने को ही धर्म मान लेते है| पशु भी तो दिगम्बर फिरते है, तो क्या इस वेश से मुक्ति हो जाएगी? नहीं, क्योंकि यह तो नक़ल है, की कपडे तो बदल लिए लेकिन आत्मा नहीं बदली|
इसलिए मैंने इसका विभाजन कर दिया,
एक है आचरण,
और एक है चारित्र|
चारित्र का अर्थ है (प्रवचनसार),
चारित्रम खलु धम्मो: - चारित्र धर्म है
धम्मो जो सो समोत्ति णिद्दिट्ठो - धर्म क्या है? साम्य भाव है, साम्य भाव का नाम धर्म है, वेश का नाम धर्म नहीं है|
ये व्रत नियम आदि सारे वेश है, नक़ल है| जो एक दिन का भी उपवास नहीं करते वो भी मोक्ष चले जाते है ऐसा पढ़ा है, चक्रवर्ती भरत के ९२३ पुत्र दीक्षा लेते ही मुक्ति को प्राप्त हो गए, क्यों? उनके रोगो का निदान हो गया| रोग कोन से थे, मोह, राग और द्वेष, उनका निदान होते ही मोक्ष हो गया| ये आचरण, सब बीच की विधि है, जैसे अगर किसी को क्रोध आता है तो वह मोन रख ले तो उतनी देर तक जो क्रोध आया है वो रुका रहेगा| तो ये धर्म नहीं है, यह अपने कषाये को समझने की विधि है| ये सभी शुभ क्रिया है लेकिन शुद्ध क्रिया नहीं है|
जीवो के ३ तरह के भाव होते है - अशुभ, शुभ और शुद्ध (जिसको माँ श्री जी ने पिछले महीने के प्रवचन में 'https://www.onlineritual.com/02-nov-2025' विस्तार से समझाया था)
आज दो पहलु चल रहे है, एक साधुओं का पहलु और दूसरा काञ्जिपंथी|
साधु पंथी कहते है ये छोड़ दो, ये नियम रख लो.. लेकिन इनके बिना भी काम नहीं चलता वर्ना अशुभ कर्म को कैसे रोकोगे? लेकिन सिर्फ इनको करने से भी मुक्ति नहीं मिलेगी| इसीलिए ये शुभ कर्म भी छोड़कर शुद्ध कर्म की तरफ भड़ना होगा| तब अपने स्वरुप को समझेंगे|
और काञ्जिपंथी, शास्त्रों के शब्दो को पकड़ता है, जो की ये भी धर्म नहीं है|
धर्म तो अपने स्वाभाव मैं स्थित होना है| जिसके लिए या तो स्वाध्याय करो या ध्यान करो| यही दो चीज है, तीसरी चीज़ और कोई नहीं है|
उसके आगे का पाठ माँ श्री जी 4 january 2026 की मीटिंग मैं बताएँगे| माँ श्री जी के आज की ज्ञान वर्षा में सभी पधारे हुए सज्जन सराबोर हो गए और मोक्ष मार्ग की और अग्रसर हो चले|
माँ श्री कौशल जी की जय |
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